“वर्ष 2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करके इस राज्य को तीन भागों में बांटकर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तो उत्तर बंगाल की राजनीतिक पार्टियों ने भी इसी तर्ज पर बंगाल के पहाड़ी जिलों को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग शुरू कर दी…
इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। पश्चिम बंगाल का जल्द ही विभाजन हो सकता है। उत्तर बंगाल के कई जिलों को जिलों को मिलाकर नया केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग भारतीय जनता पार्टी के अंदर उठने लगी है। एक नेपाली समाचार पत्र ने भाजपा सांसद जॉन बारला के हवाले से इस आशय की खबर भी प्रकाशित की है।
नेपाली समाचार पत्र के मुताबिक, जॉन बारला का कहना है कि पश्चिम बंगाल की सरकार उत्तर बंगाल के जिलों से मोटी कमाई करती है, लेकिन उसके विकास पर ध्यान नहीं देती। बंगाल सरकार की नीतियों की वजह से दार्जीलिंग, कलिम्पोंग समेत उत्तर बंगाल के तमाम जिले उपेक्षित हैं।
इसलिए वे चाहते हैं कि उत्तर बंगाल को बंगाल से अलग करके केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया जाये। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी इसकी मांग करेंगे।
भाजपा के अनुसार दार्जीलिंग, कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, कलिम्पोंग, अलीपुरदुआर, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दनाजपुर को मिलाकर अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जा सकता है।
नया केंद्र शासित प्रदेश बनाने के पीछे तर्क यह भी दिया जा रहा है कि बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते बंगाल में होने वाली घुसपैठ चिंता का विषय है।
इतना ही नहीं, चीन के साथ सीमा पर जारी तनाव के बीच ड्रैगन से भी असुरक्षा का भाव है। इसलिए केंद्र सरकार को बंगाल के इन 7 जिलों को मिलाकर नया केंद्रशासित प्रदेश बना देना चाहिए, ताकि घुसपैठ आदि के मुद्दे पर राज्य के साथ कोई विवाद न रह जाये। उत्तर बंगाल के लोग लंबे अरसे से ऐसी मांग करते रहे हैं।
लंबे अरसे से अलग गोरखालैंड की मांग कर रही पार्टियों ने कहा कि जम्मू, कश्मीर और लेह की तरह दार्जीलिंग को भी केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देना बेहतरीन विकल्प होगा।
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के नेता रोशन गिरि ने कहा था कि दार्जीलिंग के लोगों की मांग भी पूरी होनी चाहिए। कहा कि दार्जीलिंग, तराई और डुआर्स को मिलाकर केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाये।
गोरखालैंड टेरिरोरियल एडमिनिस्ट्रेशन के प्रशासक और ममता बनर्जी के करीबी रहे विनय तमांग ने भी कहा था कि अगर जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिल सकता है, तो दार्जीलिंग को क्यों नहीं।
हालांकि, ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने किसी भी तरह से बंगाल के विभाजन का विरोध किया था।
यह पहला मौका नहीं है, जब उत्तर बंगाल के जिलों को बंगाल से अलग करने की मांग की जा रही है। गोरखालैंड की मांग कई दशक पुरानी है। हिल काउंसिल बनाकर दार्जीलिंग और कलिम्पोंग के आंदोलन को दबा दिया गया था।
गोरखालैंड के अलावा कामतापुरी की भी मांग उठती रही है। ये मांग पहाड़ी जिलों की स्थानीय पार्टियों की थी। लेकिन, इस बार भाजपा के नेता यह मुद्दा उठा रहे हैं। इसलिए इस आंदोलन के जोर पकड़ने की उम्मीद जतायी जा रही है।
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