पटना (इंडिया न्यूज रिपोर्टर)। बिहार के नालंदा जिले के एक बड़े जमींदार रहे कामेश्वर सिंह की 100 बीधा जमीन, पटना में कई फ्लैट समेत करोड़ों की संपत्ति पर 41 वर्षों से उनका वारिस (बेटा) बनकर काबिज व्यक्ति फर्जी निकला।
बिहार शरीफ व्यवहार न्यायालय के एडीजे मानवेन्द्र मिश्र ने चार दशक पुराने इस मामले में मंगलवार को फैसला सुनाया। जज ने कहा कि वारिस बना व्यक्ति उनका बेटा कन्हैया नहीं, दयानन्द गोस्वामी है। वह जमुई के लखैय गांव का रहने वाला है।
मिली 3-3 साल की सज़ाः कोर्ट ने दयानन्द पर दो अलग-अलग धाराओं में तीन-तीन साल और एक धारा में 6 माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई। दस-दस हजार का जुर्माना भी लगाया। जुर्माना नहीं देने पर 6 माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। सजा सुनाने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
सहायक लोक अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक के अनुसार दयानन्द को धारा 419, 420 में तीन-तीन साल और दस हजार जुर्माना तथा 120 बी के तहत छह माह के कारावास की सजा सुनाई गई है।
40 वर्षों तक मुखिया रहे कामेश्वर सिंहः खुद मुरगावां पंचायत के करीब 40 वर्षों तक मुखिया रहे थे। जबकि, उनके भाई दिलकेश्वर सिंह सांसद के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता रहे हैं।
इस परिवार के कई लोग देश में बड़े-बड़े पदों पर हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक दयानन्द ने 100 बीघा में करीब 45 बीघा जमीन बेच दी है या पत्नी के नाम कर दी है।
आरोपी नहीं बता पाया कि 4 साल कहां रहाः सिलाव के मुरगावां गांव निवासी कामेश्वर सिंह का पुत्र कन्हैया 1977 में मैट्रिक परीक्षा देने के दौरान गायब हो गया था। पांच बहनों में वह एकलौता भाई था। इसी बीच, वर्ष 1981 में हिलसा के केशोपुर में एक भरथरी (जोगी) आया।
उसने कहा कि वह मुरगावां के बड़े आदमी का लड़का है। लोगों के समझाने पर कामेश्वर सिंह उसे घर ले आये। तब से वह पुत्र बनकर करोड़ों की संपत्ति पर काबिज रहा। हालांकि, कामेश्वर सिंह की पत्नी और पुत्रियों ने उसे कभी कन्हैया नहीं माना।
पढ़ाने वाले शिक्षक ने कहा- आरोपी नहीं है असल कन्हैयाः दयानन्द की संदिग्ध हरकत को देख मां रामसखी देवी ने 1981 में ही प्राथमिकी दर्ज करा दी। कहा कि पुत्र वियोग, अधिक उम्र व मोतियाबिंद के कारण उनके पति नहीं पहचान सके।
कन्हैया ने जिस मिडिल और हाईस्कूल में पढ़ाई की थी, वहां के शिक्षकों ने भी दयानन्द को नहीं पहचाना था। 1990 में कामेश्वर सिंह और बाद में रामसखी की मृत्यु हो गई। इसके बाद केस को खारिज कर दिया गया था। लेकिन,पुत्री विद्या देवी ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और केस को खुलवाया।
अपना ही फर्जी डेथ सर्टिफिकेट कोर्ट में दियाः कन्हैया के रूप में चार साल बाद लौटे दयानन्द ने कोर्ट में कहा था कि उसे पता चला कि गांव में उसकी हत्या का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इसी डर से भागकर भरथरी बन गया।
जज ने फैसले में कहा है कि 77 से 81 तक वह कहां और किसके साथ रहा, यह साबित नहीं कर सका। उसने कोर्ट में दयानन्द गोस्वामी का फर्जी डेथ सर्टिफिकेट देकर गुमराह करने की कोशिश भी की। यह कथित मृत्यु के 32 साल बाद जारी कराया गया था। सर्टिफिकेट में 16 वर्ष की आयु में 1982 में दयानन्द की मृत्यु बतायी गयी थी।
फर्जी निकला डेथ सर्टिफिकेटः कोर्ट ने जांच करायी तो सर्टिफिकेट गलत पाया गया। कोर्ट ने पूछा-वह कन्हैया है तो फिर उसके पास दयानन्द का डेथ सर्टिफिकेट कैसे आया। इसका वह जवाब नहीं दे पाया।
राजधानी के फ्लैट पर लगातार दावा ठोक रहा था जालसाज दयानन्दः स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक कामेश्वर सिंह के पास 100 बीघा से अधिक जमीन थी। परबलपुर में भी 2 बीघा जमीन है।
मुरगावां गांव में भी दोमंजिली इमारत दो कट्ठे से भी अधिक में बनी हुई है। इसकी कीमत लाखों में है। हालांकि इस सम्पति में आधी कामेश्वर सिंह के भाई की है।
पटना के निलगिरी अपार्टमेंट में भी कामेश्वर सिंह का फ्लैट है। इसकी वर्तमान कीमत 60 लाख से भी अधिक बतायी जा रही है। पटना में लक्ष्मी कॉप्लेक्स और सीताराम कॉम्पलेक्स में भी कामेश्वर सिंह और उनके भाई दिलकेश्वर सिंह के फ्लैट हैं।
बताया जाता है कि इस पर भी दयानंद ने दावा ठोक रखा था। लोग बताते हैं कि दयानंद ने काफी खेत बेचे हैं लेकिन कितना, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है।