इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। वर्ष 2023 के नवंबर माह में बिहार सरकार के जिस अधिकारी की सबसे ज्यादा तारीफ हुई। वे शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी पटना गांधी मैदान में 1.20 लाख शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटते वक्त कहा था कि हम लोग देख रहे हैं कि पाठक जी कितने लोकप्रिय हैं। लेकिन ठीक एक महीने बाद 15 विधान पार्षद उनके पास पहुंचे और पाठक को तत्काल हटाने की मांग की। यह सब मुख्यमंत्री की ओर से केके पाठक की तारीफ किए जाने के चंद दिन बाद हो गई।
वेशक, शिक्षा विभाग में महज छह महीने में अपर मुख्य सचिव रहे केके पाठक ने आदेशों की झड़ी लगा दी। उन्होंने स्कूलों का ताबड़तोड़ निरीक्षण किया। लापरवाह स्कूल प्रभारियों पर गाज गिराई। हजारों ऐंठे शिक्षकों का वेतन भुगतान बंद कर दिया। अब जब वे छुट्टी पर चले गए हैं। तब से हंगामा मचा है कि केके पाठक ने अपना पद स्वेच्छा से छोड़ दिया है, केके पाठक फिर आने वाले हैं या उनकी छुट्टी की जा रही है।
उनके छुट्टी पर जाने के कारणों को लेकर शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी के हवाले से खबर है कि केके पाठक ने अपनी छुट्टी की अवधि में अपना प्रभार किसी को सौंपा है। उन्होंने पद नहीं छोड़ा है।
डॉ. अजय कुमार से गाली गलौज का वीडियो वायरलः इसमें सबसे खास बात ये है कि केके पाठक तब छुट्टी पर गए, जब उनका डॉ. अजय कुमार से गाली गलौज का वीडियो वायरल हुआ। दूसरी तरफ राजभवन से विवाद खुलकर सामने आ गया। जानकार इन दोनों घटनाओं को भी छुट्टी पर जाने का कारण समझते हैं। इसकी चर्चा भी होती है। हालांकि, शिक्षा विभाग ऐसा नहीं मानता।
शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्र के हवाले से कहा गया है कि राज्यपाल के कार्यालय ने हाल ही में उच्च शिक्षा के कामकाज में पाठक के लगातार हस्तक्षेप पर आपत्ति जताई थी, जो विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल के अधिकार को कमजोर करने जैसा है।
उधर, वायरल हुए ऑडियो टेप में कथित तौर पर पाठक को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार को गालियां देते हुए सुना गया। हालांकि, केके पाठक की छुट्टी पर जाने का राज ये दो घटनाएं हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता।
केके पाठक और नीतीश कुमार का रिश्ता बहुत पुरानाः कहा जाता है कि 1990 बैच के 55 वर्षीय आईएएस अधिकारी केके पाठक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रिश्ता बहुत पुराना रहा है। वर्ष 2005 में नीतीश के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद पाठक बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण और बाद में बिहार राज्य आवास बोर्ड के प्रबंध निदेशक बनाए गए।
उन्होंने वर्ष 2010 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले शिक्षा विभाग में सचिव के रूप में भी कार्य किया। वर्ष 2015 में नीतीश कुमार ने केके पाठक के बिहार लौटने के बाद शराबबंदी कानून का मसौदा तैयार करने में पाठक को शामिल किया।
उसके बाद नीतीश कुमार ने केके पाठक को शिक्षा विभाग के लिए चुना। इसके पीछे वजह पूरी तरह रणनीतिक थी। कहा जाता है कि चूंकि विभाग राजद कोटे के मंत्री चंद्रशेखर के अधीन है, इसलिए नीतीश एक मजबूत और गतिशील नौकरशाह चाहते थे, जो इस विभाग को सुधारे और नई पहल शुरू कर सके।
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से बढ़ती गई दूरीः नतीजतन, पाठक ने जून 2023 में शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण करने के बाद कई कदम उठाए। जैसे कि छुट्टियों की सूची में कटौती करना और स्कूल के घंटे बढ़ाना। इस प्रक्रिया में शिक्षकों, शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से दूरी बढ़ती गई। केके पाठक ने कुछ छुट्टियों को लिस्ट से हटा दिया। इसे लेकर राजभवन से भी विवाद गहरा गया।
कुल मिलाकर केके पाठक रफ्तार के साथ अपना कदम बढ़ाते रहे। उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन लगातार मिलता रहा। नीतीश कुमार अपने सहयोगियों से ये कहते पाए गए कि एक आदमी अच्छा काम कर रहा है, उसे भी लोग हटाना चाहते हैं।
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के रूप में केके पाठक ने जिलों के डीएम, जिला शिक्षा अधिकारियों और अन्य अधिकारियों को 100 से अधिक पत्र जारी किए। यहां तक कि उन्होंने राज्य भर में यात्रा की। स्कूलों का निरीक्षण किया। सोशल मीडिया पर स्कूलों को लेकर वायरल वीडियो और रील को भी देखा।
नव-नियुक्त शिक्षकों को कड़ा संदेशः नव-नियुक्त शिक्षकों को केके पाठक ने साफ कहा कि वे ग्रामीण शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करें। यदि उनसे नहीं हो रहा है, तो वे नौकरी छोड़ दें। अगर मजदूर का बेटा मजदूर ही बनेगा, तो हमारी क्या जरूरत।
केके पाठक ने छात्रों के साथ शिक्षकों की उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए एक एप को सामने लाया। उदाहरण के लिए समझिए। बिहार के सभी 72,663 सरकारी स्कूलों में चरण-वार उपस्थिति की बायोमेट्रिक प्रणाली की शुरुआत को धीरे-धीरे बढ़ाया जाने की कोशिश हो रही है। ये इसलिए ताकि मध्याह्न भोजन के संबंध में सही रिकॉर्ड हो।
केके पाठक ने 4,602 वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी को मुहैया कराने का प्रयास किया है। मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता और शौचालय सुविधाओं की स्थिति की जांच करने के लिए नियमित और औचक निरीक्षण की व्यवस्था। शिक्षकों द्वारा छुट्टी के आवेदनों को नियमित करना। डेटा एकत्र करने में सहायता के लिए सेवानिवृत्त शिक्षकों को सूचीबद्ध करना।
इसके अलावा स्कूलों में बुनियादी ढांचे का प्रावधान करना। इसलिए की कोई भी बच्चा जमीन पर नहीं बैठे। आंकड़ों से पता चला कि बिहार के 72,663 सरकारी स्कूलों में से 15,000 से अधिक में बेंच या डेस्क नहीं थे।
इसके अलावा इन स्कूलों के लिए आवंटित की गई राशि पर्याप्त नहीं थी। केके पाठक ने स्कूलों ही कोचिंग की व्यवस्था को लागू किया। पिछले अक्टूबर में डीएम को लिखे एक पत्र में, पाठक ने कहा कि माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी एक प्रमुख कारण है कि छात्र कोचिंग संस्थानों में जा रहे हैं।
विभाग कुछ संस्थानों को सूचीबद्ध कर रहा है, जो विज्ञान, गणित, अंग्रेजी और कंप्यूटर की क्लास स्कूल में ही लेंगे। निश्चित दरों पर कक्षाएं होंगी और इसका भुगतान विभाग द्वारा किया जाएगा।
‘मिशन दक्ष’ की शुरुआतः केके पाठक ने ‘मिशन दक्ष’ की शुरुआत की। जिसका फायदा अब दिखने लगा है। केके पाठक की ओर से किए गए इन उपायों ने जहां प्रशंसा बटोरी। वहीं दूसरी ओर उनके कई आदेश विवादों में घिरते रहे। जैसे कि शिक्षा विभाग के कर्मचारियों द्वारा कार्यालय में जींस और टी-शर्ट पहनने पर प्रतिबंध।
उसके अलावा शिक्षकों के किसी ग्रुप और संस्था के अलावा संघ में शामिल नहीं होना। किसी संगठन का निर्माण नहीं करना। किसी धरने में भाग लेने पर कार्रवाई झेलने के लिए तैयार रहना। हिंदी और उर्दू-माध्यम के स्कूलों के लिए अलग-अलग वार्षिक छुट्टियों की सूची।
यहां तक कि शिक्षक गर्मियों की छुट्टी में स्कूलों में उपस्थित रहें। इतना ही नहीं 150 से अधिक शिक्षकों को सोशल मीडिया पर कुछ बोलने और लिखने के लिए नोटिस तक भेजा गया। केके पाठक की ओर से गैरहाजिर रहे 1200 से अधिक शिक्षकों का वेतन रोका गया। इसकी भी जमकर आलोचना हुई।
उसके अलावा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव बनने के बाद चार ऐसे मौके आए, जब उनका राजभवन से टकराव हुआ। 18 अगस्त को बिहार शिक्षा विभाग ने बीआर अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के वीसी और प्रो-वीसी का वेतन रोक दिया था।
केके पाठक से राजभवन के साथ शिक्षा मंत्री भी नाराजः लेकिन राजभवन ने एक दिन बाद फैसला पलट दिया। 22 अगस्त को, शिक्षा विभाग ने राज्य के पांच विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किए, जबकि राजभवन ने 4 अगस्त को इसी तरह का विज्ञापन निकाला था। खींचतान के बीच सीएम ने राज्यपाल से मुलाकात की, पाठक के विभाग ने आखिरकार परिपत्र वापस ले लिया।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजभवन ही केके पाठक से नाराज रहा। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को लगता है कि केके पाठक कोई भी आदेश जारी करने से पहले उन्हें विश्वास में नहीं लेते हैं। केके पाठक के पदभार संभालने के ठीक एक महीने बाद मंत्री के निजी सचिव की ओर से शिक्षा विभाग के अधिकारियों को लिखा गया पत्र वायरल हो गया।
जिसमें लिखा था कि इन दिनों शिक्षा विभाग में ज्ञान से अधिक चर्चा कड़क, सीधा करने, नट-बोल्ट टाइट करने, शौचालय की सफाई, झाड़ू मारने, ड्रेस पहनने, फोड़ने, डराने, पेंट गीली करने, नकेल-कसने, वेतन काटने, निलंबित करने, उखाड़ देने, फाड़ देने जैसे शब्दों की हो रही है।
उसके बाद शिक्षा मंत्री के आप्त सचिव डॉ. कृष्णा नंद यादव के शिक्षा विभाग में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। कहा गया कि केके पाठक के निर्देश पर ये कार्रवाई हुई। अंततः शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर इस विवाद को लेकर लालू यादव के पास पहुंच गए।
आखिर मामले में नीतीश कुमार को हस्तक्षेप करना पड़ा। चंद्रशेखर बाद में मीडिया से ये कहते हुए सुने गए कि हर कोई जानता है कि संविधान के अनुसार किसका पद श्रेष्ठ है। अब जबकि केके पाठक अपनी छुट्टियां बढ़ा ली है। केके पाठक एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं।
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