सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सुझाव, जानें क्या है चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल

इंडिया न्यूज रिपोर्टर। चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल, जिसे संक्षेप में सीएसइएएम कहा जाता है, केवल अश्लील सामग्री की एक श्रेणी नहीं है। यह वास्तव में बच्चों के साथ हुए यौन शोषण का एक गंभीर रिकॉर्ड है। सीएसइएएम की परिभाषा में उन सभी सामग्रियों को शामिल किया जाता है जो बच्चों के यौन शोषण, दुरुपयोग या शोषण का अतिक्रमण करती हैं। चाहे वह फोटो, वीडियो या अन्य मीडिया के रूप में हो।

सीएसइएएम की व्यापक समस्याएँ समाज के लिए अत्यंत चिंताजनक हैं। यह न केवल पीड़ित बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि यह व्यापक रूप से समाज के सदस्यों के लिए भी खतरा पैदा करता है। बच्चे अद्भुत और संवेदनशील होते हैं, और इस प्रकार की सामग्रियों के माध्यम से उनके मन पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़े जा सकते हैं। यह बच्चों के विकास, मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य कल्याण के लिए खतरा है।

कानूनी दृष्टिकोण से सीएसइएएम के खिलाफ प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। वर्तमान में कई देशों में ऐसे कानूनों की कमी है, जो बच्चों के यौन शोषण को सख्ती से रोकते हैं। यह आवश्यक है कि विधायिका सीएसइएएम के खिलाफ सख्त प्रावधान लाने पर ध्यान केंद्रित करे। चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल ना केवल एक कानूनी मुद्दा है, बल्कि यह बच्चों के अधिकारों और उनके संरक्षण की भलाई का भी मामला है। समाज में जागरूकता बढ़ाना, शिक्षा प्रदान करना और प्रभावी कानूनी ढांचे का निर्माण करना अनिवार्य है ताकि बच्चों के खिलाफ इस प्रकार की गतिविधियों को रोका जा सके।

पॉक्सो कानून में संशोधन की आवश्यकताः सीजेआइ डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल के समय में चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल के मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। इन मामलों में बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ प्रभावी कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसके तहत पॉक्सो कानून को फिर से देखने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्तमान में यह कानून खासतौर पर यौन शोषण के मामलों को कवर करता है, लेकिन इसके संचालन में कई खामियां हैं। इन खामियों को दूर करने के लिए कुछ संशोधन आवश्यक हो गए हैं।

बच्चों के यौन शोषण के मामलों में तेजी से बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए एक स्पष्ट और मजबूत कानूनी ढांचे की जरूरत है। यदि पॉक्सो कानून में आवश्यक संशोधन किए जाते हैं तो यह न केवल पीड़ितों के लिए एक बेहतर सुरक्षा तंत्र बनाएगा, बल्कि न्याय प्रणाली में विश्वास भी बढ़ाएगा। प्रस्तावित संशोधनों में डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके यौन शोषण सामग्री को प्रसारित करने वाले तत्वों को कड़ी सजा देना तथा ऐसे मामलों की प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करना शामिल है।

इसके अलावा कानून की जटिलताओं को कम करने और इसे समझने में आसान बनाने के लिए भी संशोधन की आवश्यकता है। जब कानून का आवेदन स्पष्ट और सीधा होगा, तब अपराधियों के लिए इसकी परिकल्पना में अड़चनें आना मुश्किल होगा। साथ ही बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए उनके अधिकारों की रक्षा हेतु जागरूकता अभियान भी जरूरी हैं, ताकि स्थिति के प्रति समाज की संवेदनशीलता बढ़ सके। इस प्रकार पोक्सो कानून में आवश्यक संशोधनों के माध्यम से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रोकथाम में सहायक एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

सेक्स एजुकेशन की महत्वताः सेक्स शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बायोलॉजिकल प्रक्रिया को समझाना नहीं है, बल्कि यह बच्चों को उनके शरीर, उनके अधिकारों और रिश्तों के बारे में एक व्यापक समझ प्रदान करना भी है। यह शिक्षा नैतिकता और कानूनी ज्ञान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बच्चों को सुरक्षित रहने और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर मुद्दों के प्रति जागरूक करने में सहायक होती है। बच्चों को यह जानकारी देना महत्वपूर्ण है कि उन्हें किस प्रकार की सामग्री से बचना चाहिए और यदि वे किसी ऐसी स्थिति का सामना करते हैं तो उन्हें किससे संपर्क करना चाहिए।

सेक्स शिक्षा का एक प्रभावी कार्यक्रम केवल शारीरिक शिक्षा पर केंद्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक मुद्दों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा बच्चों को यह समझने में मदद करती है कि प्रेम, सहमति और सम्मानित रिश्ते क्या होते हैं। बच्चों को यह बताना आवश्यक है कि उनका शरीर उनकी संपत्ति है और उन्हें किसी भी आपत्तिजनक व्यवहार के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

स्कूलों में सेक्स शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। अध्यापकों को प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि वे बच्चों के साथ खुलकर और आराम से चर्चा कर सकें। पाठ्यक्रम को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि वह बच्चों की उम्र के अनुसार हो और उन्हें प्रासंगिक जानकारी प्रदान करे। इसके अलावा माता-पिता को भी इस प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है, ताकि वे अपने बच्चों के साथ इन विषयों पर संवाद कर सकें। इस तरह बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण में सही जानकारी मिल सकेगी, जो उन्हें चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ उनकी रक्षा के लिए सशक्त बनाएगी।

प्रशिक्षण और जागरूकताः बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह अत्यावश्यक है कि शिक्षकों, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल (सीएसईएम) की पहचान और उसके संकेतों के बारे में व्यापक प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। ऐसे संकेतों की पहचान करना, जो हिंसाबद्ध या उत्पीड़न की स्थिति को इंगित कर सकते हैं, अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि प्रशिक्षकों और पेशेवरों को उचित जानकारी नहीं दी जाती है तो बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप परिवारों पर गंभीर मानसिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है।

बच्चे अत्यंत संवेदनशील होते हैं और उन्हें ऐसे वातावरण में विकसित होने की आवश्यकता होती है, जहाँ उनकी सुरक्षा का ध्यान रखा जा सके। हालात के आधार पर शिक्षकों को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए कि कौन से व्यवहार संकेत दे रहे हैं कि कोई बच्चा खतरे में है। इसी प्रकार स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को भी इस तरह के संकेतों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि वे समय पर उचित कार्रवाई कर सकें। कानून प्रवर्तन अधिकारी भी बिना किसी कच्चे या आधे-अधूरे जानकारी के कार्रवाई करने में असमर्थ होते हैं।

इस दिशा में प्रभावी पहल की आवश्यकता है। जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से इन पेशेवरों को ऐसे संकेतों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए और साथ ही उन्हें यह सिखाना चाहिए कि यदि वे इस प्रकार के संकेत देखते हैं तो उन्हें किस प्रकार की कार्रवाई करनी चाहिए। इस दिशा में सशक्तिकरण और समाज की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है। केवल एक संगठित और समर्पित दृष्टिकोण ही बच्चों को सुरक्षित रखने की दिशा में प्रगति कर सकता है।

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