धारा 66 (A) के तहत दर्ज हो रहे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट हैरान, 2 हफ्तों में सरकार से मांगा जबाव

जो धारा वर्षों पहले रद्द कर दी गई हो उस धारा के अंतर्गत हजारों लोगों की गिरफ्तारी और उन्हें दी जाने वाली सजा के आंकड़े को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट भी उस वक्त हैरान रह गई, जब उन्हें संज्ञान हुआ कि धारा 66 ए के तहत देश भर में बीते वर्षों में हजारों मामले दर्ज किए गए हैं

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। धारा 66 ए को वर्ष 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रद्द कर दिया गया था। सभी राज्यों को आदेश दिया गया था कि वे अपने सभी पुलिस अधिकारियों को इस संबंध में सूचित करें। अब आगे से इस धारा के अंतर्गत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। लेकिन, शायद राज्य ने इस सम्बन्ध में अपने कर्तव्य को पूरी तरह से नहीं निभाया।

इस संबंध में पीयूसीएल  नामक एनजीओ द्वारा इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया गया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के विरुद्ध नोटिस जारी किया है।

इस संबंध में सीनियर एडवोकेट संजय पारेख ने बेंच को बताया कि यह आश्चर्यजनक है कि जो धारा 2015 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रद्द कर दिया गया था, उसे आज भी अमल में लाया जा रहा है। इसके तहत निर्दोष और मजबूर लोगों को सताया जा रहा है।

इस पर बेंच ने कहा कि हां हमने इससे जुड़े कई मामले देखे हैं, चिंता न करें इस पर हम कुछ करेंगे।

सरकारी वकील के के वेणुगोपाल ने कहा कि आईटी अधिनियम का अवलोकन के तहत देखा जा सकता है कि यह अधिनियम जहां भी है, वहां उसके नीचे एक टिप्पणी की गई है कि इस धारा को रद्द कर दिया गया है।

मगर पुलिस पदाधिकारी इस धारा को तो पढ़ते हैं, मगर इसके नीचे लिखी टिप्पणी को बिना पढ़े ही इसके तहत मामला दर्ज कर लेते हैं।

अब हम इस संबंध में यही कर सकते हैं कि इस धारा के नीचे ब्रैकेट में लिख सकते हैं कि इस धारा को निरस्त कर दिया गया है, हम नीचे इस फैसले का पूरा उद्धरण लिख सकते हैं।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि आप दो हफ्ते में जवाबी हलफनामा तैयार करें। हमने इसके लिए नोटिस जारी कर दिया है।

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