Monday, April 29, 2024

कोरोना संक्रमण और हार्ट अटैक, सालों बाद तक अचानक हो सकती है मौत, ऐसे बचें

👉46 साल के कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार को हार्ट अटैक। 👉41 साल के टीवी अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला को हार्ट अटैक। 👉59 साल के कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव की जिम में कसरत करते हार्ट अटैक। 👉जम्मू-कश्मीर में 21 साल का एक लड़का नाचते हुए मंच पर गिरा। उसे हार्ट अटैक आया था और उसकी मौत हो गई। 👉मुंबई में गरबा खेलते हुए एक 35 साल के शख़्स की हार्ट अटैक से मौत हो गई। 👉पिछले हफ़्ते 33 साल के एक जिम ट्रेनर बैठे-बैठे बेहोश हो गए। उनकी हार्ट अटैक आने से मौत हो गई।

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। भारत में पिछले एक साल में दिल संबंधी बीमारी के कारण मौत की कई घटनाएं सामने आई हैं। लोगों को अचानक बैठे-बैठे, नाचते, कसरत करते हुए हार्ट अटैक आने के वीडियो सामने आए हैं।

वीडियो में दिख रहा है लोग हार्ट अटैक के कारण अचानक गिर जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है। कुछ लोगों को पहले से दिल संबंधी बीमारियों होने की बात भी सामने आई है। –

Corona infection and heart attack death can happen suddenly after years avoid like this 2हालांकि इनमें से किसी भी मामले के कोविड से जुड़े होने के प्रमाण नहीं मिले हैं लेकिन कुछ लोग हार्ट अटैक को कोरोना महामारी के प्रभाव के रूप में देख रहे हैं।

इस समय भारत में कोरोना संक्रमण के मामले तो काफ़ी कम हो गए हैं लेकिन इसके दूरगामी प्रभावों को लेकर डॉक्टर पहले भी आगाह करते रहे हैं।

ऐसे में जानते हैं कि क्या कोरोना संक्रमण और दिल से जुड़ी बीमारियों का क्या संबंध है? वहीं, वैक्सीन भी किस तरह से प्रभाव डालती है।

सामान्य श्वसन संबंधी समस्याओं (जुकाम से लेकर निमोनिया तक) के अलावा इस बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है कि कोविड-19 और श्वसन संबंधी अन्य वायरस से दिल से जुड़ी बीमारियों का ख़तरा बढ़ सकता है।

अन्य महामारियों के बाद मिली जानकारियों से पता चलता है कि ये लक्षण जीवन प्रत्याशा को कम कर देते हैं यानी समय से पहले लोगों की मौत हो सकती है।

1918 के स्पेनिश फ्लू के बाद उस समय के वैज्ञानिक लिटरेचर में ब्रेन फॉग और लगातार थकान के दुर्लभ मामलों के बारे में बताया गया था। ब्रेन फॉग का मतलब है व्यक्ति के सोचने की प्रक्रिया में शिथिलता आना। उसे याद रखने और ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल आती है। ये दोनों ही लक्षण कोविड-19 में भी देखे गए हैं।

लेकिन, स्पेनिश फ्लू के सामान्य लक्षणों के अलावा उसके कुछ दूरगामी प्रभाव भी पड़े। इसके बाद लगातार हार्ट अटैक के मामले देखने को मिले। वर्ष 1940 से 1959 के बीच हार्ट अटैक के मामलों की ऐसी लहर आई थी जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया।

हार्ट अटैक के इतने मामले आना बहुत अजीब था और इसे समझाना मुश्किल था। लेकिन, आज हमें पता है कि फ्लू महामारी इसकी वजह रही थी। एक तरह से इस वायरस ने ठीक हो चुके लोगों में टाइम बॉम्ब छोड़ दिया था। वो ठीक होकर भी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं थे।

दिल से जुड़ी इन बीमारियों से खासतौर पर पुरुष प्रभावित हुए थे जैसे कि फ्लू महामारी और कोविड-19 में हुआ। इसके लिए संभावित कारण बताया गया था कि 1918 में 20 से 40 साल के पुरुषों में असामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण आगे चलकर ये समस्या देखने को मिली है।

 जन्म से पहले 1918 के फ्लू वायरस से संक्रमित होने के चलते 60 साल के बाद दिल संबंधी बीमारियों का ख़तरा बढ़ सकता है।

बाद के अध्ययनों में पाया गया कि इंफ्लूएंज़ा वायरस के संक्रमण से एथरोस्क्लेरॉटिक प्लेक्स का विकास बढ़ जाता है। ये प्लेक्स रक्तवाहिनिओं में जम जाते हैं और रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है। इससे हार्ट अटैक आ सकता है। वहीं, रक्तवाहिनियों में मौजूद एंडोथीलियम को नुक़सान पहुंचने से भी प्लेक्स बनते हैं और हर्ट अटैक का ख़तरा बढ़ जाता है।

Corona infection and heart attack death can happen suddenly after years avoid like this 1कोरोना के चलते दिल की बीमारी के पीछे दो संभावनाएं बताई जाती हैं और दोनों ही प्रमाणों पर आधारित हैं। वायरस से संक्रमित होने पर जब शरीर असामान्य तरीक़े से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देता है तो उससे दिल को नुक़सान पहुंच सकता है।

इससे रक्तवाहिनियां मोटी हो जाती हैं जिससे उनमें रक्त प्रवाह के लिए जगह कम हो जाती है और वो बाधित हो जाता है। इसे वस्क्यूलर इंफ्लेमेशन कहा जाता है। इसलिए जो लोग पहले ही दिल संबंधी बीमारियों से ग्रस्त थे उनमें ये समस्या और गंभीर हो गई।

कोरोना वायरस एसीई2 प्रोटीन का इस्तेमाल शरीर में प्रवेश करता है जो एंडोथीलियल सेल्स में प्रचूरता के साथ मौजूद होता है। ये सेल्स रक्तवाहिनियों में होते हैं। ये प्रोटीन दिल के काम करने, ब्लड प्रेशन सामान्य रखने, इलेक्ट्रोलाइट कंट्रोल और नसों की मरम्मत के लिए ज़रूरी होता है।

जैसे कि कोविड-19 एंडोथीलियम को प्रभावित करता है इससे प्लेसेंटा को नुक़सान पहुंच सकता है और गर्भपात हो जाता है। यहां तक कि कोविड-19 के कारण गर्भवती महिलाओं में रक्तवाहिकाओं में हुई क्षित उन मामलों से मेल खाती है जिनमें ब्लड प्रेशर में असंतुलन के कारण रक्तवाहिकाओं को नुक़सान और गर्भपात होता है।

इसके अलावा, अन्य अध्ययन दिखाते हैं कि शुरुआती गर्भधारण में ये वायरस भ्रूण के अंगों को हानि पहुंचाता है जो असमान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के परिणामों के कारण होता है।

एंडोथीलियम पर प्रोटीन एस के प्रभाव को रक्तवाहिकाओं को हुए संभावित नुक़सान से जोड़ा जाता है। एमआरएनए आधारित वैक्सीन को इसकी वजह बताया जाता है। इन वैक्सीन में मौजूद एमआरएनए इन उत्तकों में प्रोटीन एस बनाते हैं ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली इसे पहचाने और इसके ख़िलाफ़ सक्रीय हो जाए। लेकिन, इस क्षति को दिखाया नहीं जा सका।

हालांकि, रक्तवाहिकाओं को वैक्सीन से जुड़े नुक़सान को लेकर आगाह करने की कोशिश की जाती है लेकिन, वैज्ञानिक डाटा इसका समर्थन नहीं करता है।

मेडिकल जर्नल जेएएमए के एक हालिया प्रकाशन में दिखाया गया है कि अमेरिका में 19 करोड़ 25 लाख लोगों को वैक्सीन दी गई है। इनमें से 84 लाख लोगों में मायोकार्डिटिस (दिल की नसों में सूजन) के लक्षण पाए गए और इनमें से 92 लोगों को खास तरह के इलाज की ज़रूरत पड़ी थी। पर किसी की मौत नहीं हुई।

इसे लेकर चिंता करने का कोई कारण नहीं है। जिन लोगों में वैक्सीन लगने के कुछ दिनों बाद मायोकार्डिटिस के हल्के लक्षण देखे गए हैं उनमें ये संभावित तौर पर ज़्यादा आक्रामक इनफ्लेमेट्री प्रक्रिया का इशारा करता है। लेकिन, प्रोटीन एस से सीधे तौर पर क्षति का पता नहीं चलता।

यहां तक कि, वैक्सीनेशन के बाद खून में प्रोटीन एस का स्तर बहुत कम होता है और एंडोथीलियम पर इसका असर कुछ दिनों में ख़त्म हो जाता है।

अब तक मिले डाटा और पिछली महामारियों के उदाहरण से हम कह सकते हैं कि श्वस संबंधी अन्य संक्रमणों के मुक़ाबले कोविड-19 दिल की बीमारी के ख़तरे को और बढ़ा देता है और जीवन प्रत्याशा कम कर देता है। चाहे वो रक्तवाहिकाओं पहले हुई क्षति को बढ़ाकर या नई क्षति पहुंचाकर। इसके कारण संक्रमण के महीनों और सालों बाद भी मौत हो सकती है।

हालांकि, अच्छी बात यह है कि वैक्सीनेशन इन प्रभावों और कोविड-19 के ख़िलाफ़ प्रभावी साबित हुआ है। इसकी वजह ये है कि अगर वायरस ख़ून तक पहुंचेगा ही नहीं तो दिल को प्रभावित कैसे करेगा।

ये एक और कारण है कि हम बिना तैयारी के कोरोना वायरस से खुद को संक्रमित न होने दें। वैक्सीनेशन ज़िंदगियां बचाता है, सालों बाद भी।

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