इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। रूस और यूक्रेन की सेना के बीच जंग के साथ ही पूरे विश्व में इस बारे में चर्चाओं का बाजार जमकर गर्माया हुआ है। तीन चार दिनों से प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, सोशल मीडिया हर जगह इसी युद्ध की चर्चाएं चल रही हैं। रूस के द्वारा तीन चार दशकों के बाद इस तरह का आक्रमक रूख अख्तयार किया है।
नब्बे के दशक के बाद के सारे घटनाक्रमों पर अगर आप नजर डालें तो विश्व के सारे देशों के द्वारा अमेरिका को अघोषित तौर पर दुनिया का चौधरी मान लिया था। अमेरिका से सीधे या परोक्ष तौर पर टकराने का साहस कोई भी देश नहीं कर पाया था, पर वर्तमान में अमेरिका की परवाह न करते हुए रूस ने जिस तरह से यूक्रेन पर हमला बोला है, वह अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं माना जा सकता है।
अमेरिका में बराक ओबामा के बाद डोनाल्ड ट्रंप और वर्तमान में जो बाईडेन दोनों ही राष्ट्रपतियों की नीतियां, कार्यप्रणाली, आचार विचार आदि के कारण अमेरिका की साख पर कहीं न कहीं दाग लगा ही है। अमेरिका की साख पिछले लगभग पांच छः सालों में गिरी ही है।
पिछले साल अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन के द्वारा 14 अप्रैल को अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी की घोषणा की गई, 11 सितंबर तक समूची सेना वहां से वापस होने की बात भी उन्होंने कही।। मई से सेना वापसी आरंभ भी हुई। इधर सेना की वापसी आरंभ हुई उधर पिछले साल ही 04 मई को दक्षिणी हेलमंड सहित अन्य आधा दर्जन प्रांतों पर तालिबान के द्वारा अफगानी सेना पर जबर्दस्त हमला किया गया था।
अमेरिका के हमले के बाद भी अफगानिस्तान में धीरे धीरे प्रवेश करने वाले तालिबान ने अपने कदम नहीं रोके, वह तेज गति से ही अफगानिस्तान में प्रवेश करता रहा। उस वक्त अमेरिकी सेना की हरकतें देखकर यही लग रहा था कि अमरीकि सेना पीछे हटते हुए तालिबानियों के लिए रेड कारपेट बिछा रही थी। अगर मई में ही तालिबान के हमलों को अमेरिका के द्वारा नाकाम कर दिया जाता तो हालात इस कदर बदतर होने से रोका जा सकता था।
बहरहाल, अमेरिका की वर्तमान सरकार के ढुलमुल रवैए को देखते हुए समूचा विश्व आश्चर्य चकित ही था। लोगों को लग रहा था कि अफगानिस्तान के हालात जिस तरह बदतर हो रहे थे, उसके बाद एक दो माह में ही अमेरिका एक बार फिर अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबान को सबक सिखाएगा, पर लगभग 11 माह बाद भी अमेरिका उस मामले में पूरी तरह मौन ही बैठा हुआ है।
इसके बाद ताजा मामला रूस और यूक्रेन का है। अस्सी के दशक तक विश्व की महाशक्ति रहे सोवियत संघ के रातों रात ही अर्श से फर्श पर आने ने सभी को चौंका दिया था। एक समय में विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति माने जाने वाले सोवियत संघ को 26 दिसंबर 1991 को विघटित घोषित किया गया था।
सोवियत संघ के गणतंत्रों को इसके बाद स्वतंत्र मान लिया गया था। जब यह घटनाक्रम हुआ उस समय वहां के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्वाचोव हुआ करते थे। विघटन की घोषणा की पूर्व संध्या पर ही उन्होंने अपना पद त्याग दिया था।
इतिहास खंगाला जाए तो 15 गणतांत्रिक गुटों का समूह सोवियत संघ रातों रात टूट गया था और यह टूटने की इतनी बड़ी घटना थी कि तीन दशकों बाद भी उसके झटके महसूस किए जाते रहे।
एक अनुमान के अनुसार 1917 में रूस की साम्यवादी क्रांति से जन्मे सोवियत संघ में कम से कम 100 राष्ट्रीयताओं के लोग रहते थे और उनके पास पृथ्वी का छठवा हिस्सा हुआ करता था। यह एक ऐसा साम्राज्य था जिसने हिटलर को भी नाकों चने चबवाए थे। यह वही सोवियत संघ था जिसने अमरीका के साथ शीत युद्ध किया और परमाणु होड़ में हिस्सा लिया और इसके साथ ही वियतनाम और क्यूबा की क्रांतियों में भूमिका निभाई
सोवियत संघ का एक समय जबर्दस्त जलजला हुआ करता था, यह उस साम्राज्य का अंग रहा है जिसने अंतरिक्ष में न केवल पहला उपग्रह भेजा वरन यूरी गागरिन नामक आदमी को भी इसके साथ भेजा था।
सोवियत संघ पर अगर नजर डालें तो खेल, नृत्य, सिनेमा, साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में भी यह अन्य देशों से एक कदम आगे रहा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस का दबदबा विश्व में कम ही हुआ था। इस विघटन ने रूस को मानो तोड़ कर रख दिया था।
बहरहाल, डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों, चाल चलन और हरकतों के कारण विश्व भर में दुनिया का चौधरी कहा जाने वाला अमेरिका एक नहीं कई बार मजाक का पात्र भी बना। डोनाल्ड ट्रम्प की अनेक कथाएं और वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल होते रहे।
अगर यही किस्सा किसी ओर देश में हुआ होता तो वहां की ब्यूरोक्रेसी के द्वारा अपने देश के पहले नागरिक की अनेक नीतियों, हरकतों को बेन करने में देर नहीं की जाती, पर कहा जाता है कि अमेरिका में ब्यूरोक्रेसी के हिसाब से वहां के राष्ट्रपति नहीं चलते, वरन राष्ट्रपति के हिसाब से ब्यूरोक्रेसी चला करती है।
ट्रम्प के बाद जो बाईडेन ने अमेरिका की कमान संभाली। बाईडेन के शुरूआती कदमों को देखकर लग रहा था कि वे अमेरिका की गिरती साख और छवि को न केवल बचाएंगे वरन उसे अपने शीर्ष पर स्थापित करने की कवायद करेंगे, पर जिस तरह की नीतियां बाईडेन के द्वारा अपनाई जा रही हैं, उसे देखकर लोग अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि बाईडेन इस गुड फार नथिंग . . .!
यूक्रेन और रूस के बीच जिस तरह का युद्ध छिड़ा है, उसे देखकर ही लग रहा है कि यूक्रेन नाटो के भरोसे था, पर नाटो ने उसका साथ नहीं दिया और रही बात रूस की तो रूस को किसी का भय नहीं रह गया है।
दुनिया भर के देशों को दुनिया के कथित चौधरी अमेरिका का भय होता था, पर डोनाल्ड ट्रम्प के बाद अब जो बाईडेन की कार्यप्रणाली से यह भय भी समाप्त होता जा रहा है, इसका सीधा उदहारण यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध है।
परिस्थितियों को भांपते हुए रूस ने यूक्रेन पर हमला बोलकर परोक्ष तौर पर दुनिया के चौधरी अमेरिका की बादशाहत को ललकारा भी है। आने वाले दिनों में दुनिया में अमेरिका की तूती बोलती रहेगा अथवा रूस व चीन भी अपने साजिंदों के साथ राग मल्हार गाकर दुनिया के चौधरी की कुर्सी को हिलाकर उस पर बैठने का प्रयास करते हैं! यह देखने वाली बात होगी।