“उस दौर में मशीनों का अभाव था। ऐसे में ऊंटों के माध्यम से मिट्टी को हटाया जाता था। नहर निर्माण में घोटालों के बहुत आरोप भी लगे। लेकिन एक बार जब इस नहर का लाभ मिलना शुरू हुआ तो लोग सब भूल गए…
इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। थार रेगिस्तान का सीना चीर कर निकाली गई 649 किलोमीटर लम्बी इंदिरा गांधी नहर अपने आप में दुनिया का एक बड़ा आश्चर्य है। क्योंकि खुद इंसान ने अपनी हिम्मत के दम पर रेगिस्तान की फिजा ही बदल कर रख दी।
सदियों पहले लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण उपजे रेगिस्तान में हिमालय से पानी लाकर एक बार फिर सरसब्ज कर दिखाया है। दुनिया में मीलों लम्बे रेगिस्तान में इस तरह पानी लाने का यह इकलौता उदाहरण है।
विशाल थार के रेगिस्तान में कभी मीलों लम्बी दूरी तक रेतीले धोरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता था, वहां अब हरियाली छाई रहती है। वीरान क्षेत्र आबाद हो चुके है। राजस्थान की जीवन रेखा बनी इस नहर की वजह से रेगिस्तान अब पूरी तरह से बदल चुका है।
जोधपुर-बीकानेर सहित दस बड़े शहरों की आबादी हलक तर करने के लिए पूरी तरह से इस नहर के पानी पर निर्भर है। साथ ही भारत-पाक सीमा के बिलकुल समानान्तर चलने वाली यह नहर सुरक्षा लाइन का भी काम करती है।
थार के रेगिस्तान में सैकड़ों किलोमीटर की लम्बाई में रेतीले धोरों की मिट्टी को हटा कर उन्हें समतल कर नहर बनाना अपने आप ने बेहद मुश्किल कार्य रहा। यहीं कारण रहा कि नहर बनने में कई साल लग गए।
उस दौर में मशीनों का अभाव था। ऐसे में ऊंटों के माध्यम से मिट्टी को हटाया जाता था। नहर निर्माण में घोटालों के बहुत आरोप भी लगे। लेकिन एक बार जब इस नहर का लाभ मिलना शुरू हुआ तो लोग सब भूल गए।
आज इस नहर के बगैर राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस नहर ने ऐसे क्षेत्र में पानी पहुंचा दिया जहां पहले साल में महज दस इंच बारिश ही मुश्किल से होती थी। अब रेगिस्तान में हर तरफ हरियाली लहलहा रही है।
सच पुछिए तो राजस्थान के लिए जीवन रेखा बन चुकी यह नहर वास्तव में अपने आकार व लम्बाई के कारण एक नदी के समान है। नहर पंजाब के फिरजपुर के निकट सतलज व ब्यास नदी के संगम पर बने हरिके बैराज से शुरू होती है।
भारत की सबसे बड़ी यह नहर 649 किलोमीटर लम्बी है। इसमें से पंजाब से राजस्थान तक 204 किलोमीटर फीडर नहर है। वहीं 445 किलोमीटर मुख्य नगर है।
राजस्थान की सीमा पर इस नहर की गहराई 21 फीट व तल की चौड़ाई 134 फीट व सतह 218 फीट चौड़ी है। हनुमानगढ़ के मसीतावाली से लेकर जैसलमेर के मोहनगढ़ तक फैली मुख्य नहर से नौ शाखाएं निकलती है। सिंचाई के लिए इसकी वितरिकाएं 9,245 किलोमीटर लम्बी है।
राजस्थान के दस रेगिस्तानी जिलों के लोगों के हलक इस नहर के पानी से तर होते है। इसके अलावा कई बिजली परियोजनाओं के लिए भी पानी यहीं नहर उपलब्ध कराती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के पश्चात 2 नवम्बर 1984 को राज्य सरकार ने इसका नाम राजस्थान नहर से बदल कर इंदिरा गांधी नहर कर दिया।
सबसे पहले बीकानेर के सिंचाई विभाग के अभियंता कंवर सेन ने सबसे पहले रेगिस्तान में पंजाब से पानी लाकर सिंचाई करने की परिकल्पना की। उन्होंने वर्ष 1948 में विशाल राजस्थान नहर बाद में इंदिरा गांधी नहर की रूपरेखा तैयार की।
उनकी योजना थी कि इस नहर के जरिए बीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। बीकानेर के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने यह योजना केन्द्र सरकार के समक्ष रखी। लम्बे विचार विमर्श के पश्चात केन्द्र सरकार ने इस परियोजना को मंजूरी प्रदान की।
31 मार्च 1958 को केन्द्रीय गृह मंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने इसकी आधारशिला रखी। थार के रेगिस्तान के लिए एक जनवरी 1987 का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा जब विशाल रेगिस्तान को चीरते हुए हिमालय का पानी 649 किलोमीटर का सफर तय कर जैसलमेर के मोहनगढ़ पहुंचा।