इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। लगभग 137 साल पुरानी कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को की गई थी। कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी रही है। एक के बाद एक करके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब पार्टी से किनारा करते जा रहे हैं। कांग्रेस अब महज दो प्रदेशों में सिमटकर रह गई है। कांग्रेस का प्रदर्शन धीरे धीरे जिस तरह का हो रहा है उसे देखकर यही लग रहा है कि कांग्रेस का सूर्य अब अस्ताचल की ओर ही अग्रसर हो रहा है।
कांग्रेस के द्वारा देश को डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फखरूद्दीन अली अहमद, ज्ञानी जैल सिंह, रामास्वामी वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, प्रतिभा पाटिल एवं प्रणव मुखर्जी के रूप में आठ राष्ट्रपति और पंडित जवाहर लाल नेहरू, गुलजारी लाल नन्दा, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमति इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी.व्ही. नरसिंहराव एवं डॉ. मनमोहन सिंह के रूप में सात प्रधानमंत्री दिए हैं।
कांग्रेस का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। सत्तर के दशक में कांग्रेस में एक बार फूट डली थी, उस समय कांग्रेस अर्स का गठन किया गया था, पर कांग्रेस की स्थिति इतनी दयनीय कभी भी नहीं रही, जितनी कि वर्तमान में दिखाई दे रही है।
कांग्रेस के कद्दावर नेता एक एक कर कांग्रेस का साथ छोड़ते जा रहे हैं, उससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि पार्टी के आला नेताओं के द्वारा पार्टी के अंदर लगातार हो रहे इस क्षरण को रोकने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
हाल ही में राज्य सभा चुनावों के दौरान टिकिट वितरण से कांग्रेस के अंदर ही अंदर असंतोष का लावा खदबदाता दिख रहा है। इस लावा को कांग्रेस के अंदर ही बैठे जयचंदों के द्वारा आग में घी डालने की कहावत को चरितार्थ करते हुए जमकर भड़काया जा रहा है। लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि आने वाले दिनों में एक जी 23 अगर जन्म ले ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
यहां आपको हम बता दें कि जी 23 उन असंतुष्ट नेताओं के समूह को कहा जाता रहा है जिनके द्वारा पार्टी हाईकमान की गलत नीतियों का मुखर विरोध कर सवालिया निशान खड़े किए थे।
जी 23 के सदस्य रहे कपिल सिब्बल और जतिन प्रसाद पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा का ट्वीट भी मायने रखता है जो उनके द्वारा राज्य सभा की सूची जारी करने के तत्काल बाद किया था कि लगता है उनकी तपस्या में कोई कमी रह गई!
देखा जाए तो राज्य सभा में किसे भेजना है किसे नहीं, यह पार्टी आलकमान का नितांत निजी मामला और उनके विवेक पर ही निर्भर करता है, पर जिन नेताओं को राज्य सभा भेजने की सूची कांग्रेस के द्वारा जारी की गई है।
उनके द्वारा कांग्रेस संगठन के विकास में क्या योगदान दिया गया है इस बारे में भी रेखांकित अगर कर दिया जाता तो कार्यकर्ताओं में बढ़ रहे असंतोष को थामा जा सकता था।
कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार राज्य सभा के मनोनयन के लिए नेताओं के नामों की घोषणा से एक संदेश यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के हाईकमान को कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद लिए गए फैसलों से ज्यादा इत्तेफाक शायद नहीं है।
खबरों के अनुसार अगर इन फैसलों पर अमल ही नहीं करना है तो फिर इतना तामझाम कर चिंतन शिविर आयोजित करने का क्या औचित्य!
टिकट वितरण से नाराज अनेक नेताओं ने अपनी नाराजगी का इजहार पार्टी हाईकमान को पत्र लिखकर भी किया है। जो नेता लोकसभा चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं उन नेताओं को राज्य सभा के जरिए भेजने की क्या जरूरत है!
इसका यह मतलब भी लगाया जा सकता है कि पार्टी में गणेश परिक्रमा करने वालों की पूछ परख है और योग्य नेताओं को पार्टी आलाकमान के द्वारा दरकिनार ही किया जा रहा है।
कांग्रेस के अंदर यह चर्चा भी चल रही है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब विरोध करने वालों चाहे विरोध सही बात के आधार पर हो रहा हो, सोनिया, राहुल और प्रियंका के आसपास फटकने भी नहीं देना चाहते हैं। जो यस मेन होगा अर्थात हां में हां मिलाएगा उसे ही तवज्जो दी जाएगी!
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया वाला प्रकरण कांग्रेस के लिए बहुत बड़े सबक से कम नहीं था। ज्योतिरादित्य सिंधिया युवा हैं और उनकी अच्छी खासी फालोईंग है।
इस लिहाज से सिंधिया का कांग्रेस को अलविदा कहना वास्तव में कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था, वह भी तब जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी बहुत अच्छे मित्र हुआ करते थे।
इसी तरह हाल ही में प्रशांत किशोर और हार्दिक पटेल का कांग्रेस से नाता तोड़ना भी एक संदेश के रूप में लिया जा सकता है। जाहिर है कांग्रेस आलाकमान के सलाहकार ही उन्हें अंधेरे में रख रहे हैं।
इस तरह एक के बाद एक नुकसान होता जा रहा है और कांग्रेस नेतृत्व इस तरह के नुकसान को रोकने के लिए कुछ करता नजर नहीं आता। कांग्रेस के मंथन शिविर तो होते हैं पर इसमें लिए गए फैसलों पर अमल हो रहा है अथवा नहीं यह कौन देखेगा
हैरत की बात तो यह है कि कांग्रेस हाईकमान ऐसे नुक्सान को रोकने के लिए कुछ करता नजर नहीं आती। कांग्रेस मंथन तो हर बार करती है। लंबे-लंबे विचार शिविर होते हैं मगर इनसे निकले निष्कर्षों पर कोई अमल नहीं किया जाता।
यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि कांग्रेस की विचारधारा से आम लोगों को कैसे जोड़ा जाए! इसलिए जरूरी यह है कि पहले नेता तो पार्टी की विचारधारा को दिल से आत्मसात करें।
लोगों में कांग्रेस के प्रति विश्वास कैसे पैदा होगा यह विचार पार्टी आलाकमान को ही करना है। पार्टी के नेता जिस तरह की बयानबाजी करते हैं उस पर किसी तरह की रोक नहीं है।
पार्टी को चलाने के लिए किसी नए अध्यक्ष को चुनने की बात तो लगातार ही होती है पर अंत में घूम फिर कर पार्टी आलाकमान के चहेते अध्यक्ष चुनने के मामले को भी गांधी परिवार की देहरी पर लाकर छोड़ देते हैं, ऐसे में कांग्रेस को संजीवनी कैसे मिल पाएगी! यह विचारणीय प्रश्न है।
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