Thursday, December 12, 2024

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- लोकसेवकों को प्रशिक्षित  करने में उप्र सरकार विफल

लखनऊ (इंडिया न्यूज रिपोर्टर)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सेवा संबंधी कानूनों और नियमों के मामले में अप्रशिक्षित लोक सेवकों को लेकर बेहद अहम और कठोर टिप्पणी की है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार अहम पदों पर बैठे लोकसेवकों को सेवा संबंधी नियमों और कानूनों के बारे में प्रशिक्षित करने में विफल रही है।

हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी विभागीय जांच करने में बिल्कुल भी प्रशिक्षित नहीं है। वह विभागीय कर्मचारियों के खिलाफ होने वाली जांच को सही तरीके से नहीं कर रहे हैं और गलत आदेश पारित कर रहे हैं।

हाई कोर्ट ने कहा इससे यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट (डिसिप्लिन एंड अपील) रूल्स 1999 की अवहेलना हो रही है। कोर्ट ने प्रधान सचिव (रेवेन्यू, उत्तर प्रदेश) को निर्देश दिया कि वह लोकसेवकों को सेवा संबंधी कानूनों और नियमों के बारे में प्रशिक्षित करें, जिससे कि वे कर्मचारियों के जीवन के साथ खिलवाड़ न कर सकें और उनका कैरियर बर्बाद न कर सकें।

कोर्ट ने मामले में कमिश्नर अलीगढ़, डीएम हाथरस और एसडीएम ससनी के बारे में भी गंभीर टिप्पणी की और कहा कि ये अधिकारी विभागीय जांच सही तरीके से करने में प्रशिक्षित नहीं है।

कोर्ट ने इन तीनों अधिकारियों की ओर से याची के खिलाफ पारित आदेश को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि उसकी इंक्रीमेंट को बहाल किया जाए और उसे सभी लाभों को प्रदान किया जाय।

हाई कोर्ट ने कहा की चार सप्ताह में छह प्रतिशत की दर से एरियर का भुगतान किया जाए। अगर समयबद्ध आदेश का अनुपालन नहीं होता है तो याची के एरियर को 12 प्रतिशत की दर की ब्याज से भुगतान करना होगा।

कोर्ट ने आदेश की कॉपी प्रमुख सचिव रेवेन्यू को भेजने का भी आदेश दिया। यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ ने शिव कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।

याची की ओर से तर्क दिया गया कि वह तहसील ससनी में बतौर सहायक क्लर्क के तौर पर तैनात था। याची पर दूसरे कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करने और गाली देने का आरोप आरोप है। इसके अलावा वह तहसील परिसर में शराब पीता है और इधर-उधर लाइटर का प्रयोग करता है।

इस आरोप में उसके दो इंक्रीमेंट रोकने का आदेश पारित किया गया। याची के अधिवक्ता हिमांशु गौतम की ओर से तर्क दिया गया की याची के खिलाफ सही तरीके से जांच नहीं की गई है।

क्योंकि, आरोप को साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं प्रस्तुत हुआ और जांच अधिकारी ने मौखिक बयानों के आधार पर याची के खिलाफ कार्रवाई कर दी जोकि उत्तर प्रदेश सेवा नियम 1999 के नियम सात का उल्लघंन है।

वकील ने तर्क दिया कि जांच अधिकारी ने याची को जांच के पहले ही आरोप पत्र पकड़ाते हुए प्रतिकूल आदेश पारित कर इंक्रीमेंट को रोक दिया। एसडीएम हरी शंकर यादव के इस आदेश पर डीएम हाथरस प्रवीण कुमार लक्षकार और कमिश्नर अलीगढ़ गौरव दयाल ने भी अपनी मोहर लगा दी।

याची ने अधिकारियों द्वारा पारित आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी और इसे यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट्स (डिसीप्लिन एंड अपील) रूल 1999 के आदेश का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने भी पाया कि इन अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखते हुए आदेश पारित किया जो कि सही नहीं है।

हाई कोर्ट ने एसडीएम ससनी, डीएम हाथरस और कमिश्नर अलीगढ़ के बारे में कहा कि वे विभागीय जांच करने के लिए सही तरीके से प्रशिक्षित नहीं और गलत आदेश पारित कर रहे हैं।

कोर्ट ने यूपी सरकार को कहा कि वह अपने अधिकारियों को विभागीय जांच करने के मामले में प्रशिक्षित करने में विफल है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव रेवेन्यू को आदेश किया कि वे जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों को खासकर यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट (डिसिप्लिन एंड अपील) नियम 1999 के संदर्भ में प्रशिक्षित करने का आदेश पारित किया।